भारत एक कृषि प्रधान देश है और देश में पारंपरिक खेती के साथ-साथ उन्नत खेती का दायरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में किसान पारंपरिक खेती की जगह मुनाफे वाली खेती पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं। किसान अब नए फलों की खेती कर रहे हैं।
आपको बता दें कि काले टमाटर की खेती एक लाभदायक व्यवसाय विकल्प है जो अपनी अद्वितीय सुंदरता और विशेष रसदार स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं। आइए जानते हैं काले टमाटर की खेती के बारे में।
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बीमारियों को दूर करने में सहायक
काले टमाटर में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं, यह टमाटर कई बीमारियों से लड़ने में भी कारगर है। यह मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है। इसका सेवन मधुमेह और हृदय रोगी भी कर सकते हैं। वज़न कम करने और शुगर लेवल कम करने के लिए काले टमाटर उपयोगी होते हैं। आज के समय में इसकी मांग बढ़ती जा रही है क्योंकि यह कई तरह की बीमारियों को दूर करने में सहायक है।
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सही जलवायु और मिट्टी
काले टमाटर की खेती जनवरी के सर्दियों के महीने में की जाती है और मार्च-अप्रैल के महीने में किसानों को काले टमाटर मिलने शुरू हो जाते हैं। इसकी खेती 10 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर की जाती है। पौधे 21 से 24 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में अच्छे से विकास करते हैं। काले टमाटर की खेती के लिए सूक्ष्म तत्वों से भरपूर दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। इसे साधारण दोमट मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।
खेती करने का आसान तरीका
काले टमाटर की खेती के लिए सही मिट्टी और प्राकृतिक खाद सामग्री का उपयोग करना आवश्यक है। इसके बाद नर्सरी में बीज बोने के 30 दिन बाद पौधों को खेत में लगा दें। बीज को मिट्टी की सतह से 20 से 25 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर लगाना होता है। काले टमाटर के पौधों को नियमित रूप से पानी देना चाहिए, साथ ही समय-समय पर कम से कम हर 15 दिन में खाद का उपयोग करना चाहिए। पेड़ों पर सही संतुलन बनाए रखने के लिए पौधों की प्रतिदिन छँटाई की जानी चाहिए।
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जानिए कितनी होगी कमाई
कमाई के बारे में अगर बात की जाए तो काले टमाटर की खेती में भी लगभग उतना ही पैसा ख़र्च होता है जितना पैसा लाल टमाटर की खेती में ख़र्च होता है। काले टमाटर की खेती में केवल बीज का पैसा अधिक ख़र्च होता है। टमाटर की खेती पर पूरा ख़र्च निकालने के बाद प्रति हेक्टेयर ₹4 से ₹5 लाख रुपये का मुनाफ़ा लिया जा सकता है।
डिस्क्लेमर: खेती से होने वाला मुनाफ़ा बाज़ार की मांग, मिट्टी की गुणवत्ता और किसान के प्रयासों पर निर्भर करता है। खेती शुरू करने से पहले स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से सलाह ज़रूर लें।










