Succulent Herb Farming: आजकल खेती के क्षेत्र में वही किसान अच्छा मुनाफ़ा कमा पा रहे हैं, जो सही समय पर सही खेती कर रहे हैं। अगर आप भी ऐसा ही करते हैं, तो मोटा पैसा कमा सकते हैं। एक ऐसी ही खेती है एक रसीला जड़ी-बूटी (succulent herb) (एलोवेरा की खेती) है। जो किसानों को कम समय में लाखों का मालिक बना सकती है, क्योंकि इसमें कम लागत में भारी मुनाफ़ा होता है। आइए जानते हैं पूरी जानकारी।
मार्केट में एलोवेरा की भारी डिमांड
कोरोना महामारी के बाद एलोवेरा की खेती की मांग बहुत बढ़ गई है। एलोवेरा से बने स्वास्थ्य पेय, कैप्सूल और कई खाद्य उत्पादों को लोग बहुत पसंद कर रहे हैं। आजकल कई दवाएँ और सौंदर्य प्रसाधन (Cosmetics) भी एलोवेरा से बनाए जा रहे हैं।
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बाज़ार में कई फ़ार्मास्युटिकल कंपनियाँ एलोवेरा आधारित उत्पाद बना रही हैं। इस दवा की बहुत मांग है, लेकिन देश में अभी भी इसका उत्पादन बहुत कम है। सबसे अच्छी बात यह है कि एलोवेरा की खेती के लिए किसी खाद, उर्वरक या कीटनाशक की ज़रूरत नहीं होती है।
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एलोवेरा की खेती कब और कैसे करें?
एलोवेरा की खेती के लिए सबसे अच्छा समय जुलाई-अगस्त का महीना है। वैसे, एलोवेरा की खेती सर्दियों को छोड़कर पूरे साल भर की जा सकती है, लेकिन सर्दियों में इसकी ग्रोथ थोड़ी धीमी हो जाती है। एलोवेरा के बीज नहीं लगाए जाते हैं, बल्कि एक पौधा रोपा जाता है, जो 6-8 इंच लंबा होता है। एक एकड़ खेत में क़रीब 6 से 8 हज़ार पौधे रोपे जाते हैं।
कितना उत्पादन और कितना लाभ?
एक एकड़ खेत से हर साल क़रीब 15 से 18 टन एलोवेरा के पत्ते मिलते हैं। इन्हें आयुर्वेदिक दवाएँ बनाने वाली कंपनियों या सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनियों को बेचा जा सकता है। इसके पत्तों की क़ीमत बाज़ार में ₹15 हज़ार से ₹25 हज़ार प्रति टन तक होती है।
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मान लीजिए कि पहले साल में आपका उत्पादन 15 टन होता है, जो औसतन ₹20 हज़ार प्रति टन की दर से बिकता है। यानी पहले साल में आप एलोवेरा की खेती से क़रीब ₹3 लाख रुपए कमाएंगे, जिसमें आपका खर्च सिर्फ़ ₹80 हज़ार रुपए था। अगले साल पैदावार बढ़ती है और उत्पादन 20-22 टन तक जा सकता है।
यानी अगले साल आप ₹4 लाख रुपये से ज़्यादा कमाएंगे, जबकि ख़र्चा घटकर ₹50 हज़ार रुपये रह जाएगा। इस तरह, पहले ही साल में आपको लगभग 4 गुना प्रॉफ़िट होगा और अगले साल प्रॉफ़िट 8 गुना तक बढ़ सकता है।
डिस्क्लेमर: खेती से जुड़ी जानकारी, उपज और मुनाफ़ा ज़मीन की गुणवत्ता, जलवायु और खेती के तरीके पर निर्भर करता है। निवेश करने से पहले स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से सलाह ज़रूर लें।










